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Friday 27 April 2018

अनन्तिम के अप्रैल-जून अंक में कविता

त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'अनन्तिम' के अप्रैल - जून अंक में कविता प्रकाशित...



Wednesday 11 April 2018

हाइकु समीक्षा - श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी द्वारा

मेरा एक हाइकु...

"यह जीवन
 किस तरह बाँचुूँ
 कोरा कागज।

यह हाइकु लगभग 3 वर्ष पहले लिखा था... इस हाइकु की विस्तृत व्याख्या आदरणीय श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने वेब पत्रिका "हिंदी हाइकु" पर लिखी थी। इस व्याख्या को जब भी पढ़ते हैं तो आश्चर्य होता है कि एक हाइकु (केवल 17 वर्ण में कहे गए) इतनी विस्तृत व्याख्या सम्भव है... आदरणीय रामेश्वर जी के लिए आभार और श्रद्धा उमड़ आती है... साथ ही अपने हाइकु पर गर्व होता है।

आदरणीय रामेश्वर जी को सादर आभार           

 मंजूषा मन


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Sunday 8 April 2018

साकीबा साहित्य सम्मेलन- यादगार पल

*साकीबा साहित्य सम्मेलन*


दिनाँक 1 अप्रैल 2018 को विदिशा में *साकीबा (साहित्य की बात) समूह* (श्री ब्रज श्रीवास्तव जी द्वारा संचालित) के तीसरे साहित्य सम्मेलन एवं पुष्प स्मरण कार्यक्रम में शामिल हुए।



कार्यक्रम के प्रथम सत्र में साकीबा समूह से जुड़े होने के अनुभव साझा करने का अवसर प्राप्त हुआ। साथ साहित्य जगत के जाने पहचाने रचनाकारों से भेंट करने का सुअवसर मिला और *सबसे मिलकर जाना कि ये आभासी दुनिया पूर्णतः आभासी नहीं है इसमें अपनापन और वास्तविकता भी है।* साथ ही सबके साथ काव्यपाठ करना विशेष यादगार अनुभव रहा।



कार्यक्रम में *बेटी प्रकृति ने भी काव्यपाठ* करके उपस्थित सभी साहित्यकारों को आकर्षित कर शुभकामनाएं बटोरीं।



कार्यक्रम में रचनाकार श्री देवीलाल पाटीदार, प्रो.प्रज्ञा रावत, नवल शुक्ल, प्रदीप मिश्र, उत्तम राव बिजवे, डा.पदमा शर्मा, डा.मोहन नागर, प्रवेश लता सोनी, संतोष तिवारी, कुंजेश श्रीवास्तव, आनंद सौरभ उपाध्याय, नीलिमा, प्रो संजीव कुमार जैन, मुस्तफा खान, अर्चना नायडू, श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, सुदिन श्रीवास्तव, और स‌ईद अय्यूब, महेन्द्र वर्मा, अविनाश तिवारी, डॉक्टर पद्मा शर्मा, दिनेश मिश्र, मधु सक्सेना, उदय ढोली, रेखा दुबे, हरगोविंद मैथिल, आभा बोधिसत्व, राजेन्द्र श्रीवास्तव ने काव्यपाठ किया। कार्यक्रम में देश भर से लगभग 50 से भी अधिक साहित्यकार उपस्थित हुए।





समस्त अतिथियों का उदयेश्वर मंदिर की तस्वीर प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया गया।



युवा कथाकार स‌ईद अय्यूब एवं पूर्व विंग कमांडर अनुमा आचार्य द्वारा कुशल मंच संचालन किया गया।





हार्दिक आभार ब्रज श्रीवास्तव जी एवं समस्त साकीबा परिवार।

*मंजूषा मन*

रचना प्रवेश : साकीबा का तीसरा साहित्यिकसम्मलेन रचना ,संवाद औरम...

रचना प्रवेश :
साकीबा का तीसरा साहित्यिकसम्मलेन
रचना ,संवाद औरम...
: साकीबा का तीसरा साहित्यिक सम्मलेन रचना ,संवाद और मुलाक़ात दिनांक -१ अप्रेल २०१८ स्थान – होटल रॉयल पैलेस ,विदिशा ...

साहित्य समीर दस्तक में

एक रचना


Saturday 7 April 2018

नारी के संबल में...

रायपुर से प्रकाशित पत्रिका "नारी के सम्बल" में रचना


"मैं सागर सी"

"मैं सागर सी" हाइकु-ताँका संग्रह





"हरिगन्धा" में दोहे

हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका "हरिगन्धा में प्रकाशित दोहे



अभिनव प्रत्यक्ष में कविता

प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "अभिनव प्रत्यक्ष" में कविता प्रकाशित


"साहित्य समीर दस्तक" में कविताएँ

"साहित्य समीर दस्तक" में कविताएँ प्रकाशित


हाइकु

प्रकाशित हाइकु


"प्राची" पत्रिका में कविताएँ

डॉ राकेश भ्रमर द्वारा सम्पादित पत्रिका "प्राची" में कविताएँ



काव्य रंगोली में ग़ज़ल

काव्य रंगोली पत्रिका में एक ग़ज़ल


"हरिगन्धा" में कविता

हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका "हरिगन्धा" में कविता



Friday 6 April 2018

"हिंदी चेतना" में कविताएँ

हिंदी चेतना में प्रकाशित कविताएँ...



"गर्भनाल" में कविता

साहित्यिक पत्रिका "गर्भनाल" में कविता प्रकाशित





"हिंदी चेतना" में कविता

"हिंदी चेतना" में कविता



रचना समय मे कविताएँ

हिंदी साहित्य की नामचीन पत्रिका "रचना समय" में कविताएँ

"नायिका" में कविता

"नायिका" नई दुनिया दैनिक समाचार पत्र की साप्ताहिक पत्रिका में कविता "अलाव"


"शब्द गंगा" में दोहे



अहा ज़िन्दगी में कविता

दैनिक भास्कर की साप्ताहिक पत्रिका "अहा ज़िन्दगी" में प्रकाशित कविता


"अनन्तिम" पत्रिका के कवयित्री विशेषांक में कविता

"अनन्तिम" पत्रिका के कवयित्री विशेषांक में कविता




दुनिया इन दिनों में कविताएँ

"दुनिया इन दिनों" में प्रकाशित कविताएँ...

"मैं सागर सी" - समीक्षा

मेरे हाइकु-ताँका संग्रह "मैं सागर सी" की समीक्षा जो "दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका "पुस्तक संस्कृति" में प्रकाशित हुई थी... समीक्षा श्री शिव डोयल जी द्वारा लिखी गई है।




पंखुड़ी पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित



माहिया

माहिया

1.
ये कैसा फेरा है
दीपक के नीचे
क्यों घुप्प अँधेरा है।


2.
मचता क्यों कोलाहल
मन के भीतर ये
किस कारण है हलचल।


3.
आँखों में सपन नहीं
जीवन जीने का
अब कोई जतन नहीं।


मंजूषा मन