मन की मंजूषा में
तुम करो संहार तो करते रहो, हम सृजक हैं और रच लेंगे नया।
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Friday 6 April 2018
"गर्भनाल" में कविता
साहित्यिक पत्रिका "गर्भनाल" में कविता प्रकाशित
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