मन की मंजूषा में
तुम करो संहार तो करते रहो, हम सृजक हैं और रच लेंगे नया।
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Saturday 7 April 2018
अभिनव प्रत्यक्ष में कविता
प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "अभिनव प्रत्यक्ष" में कविता प्रकाशित
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